बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- लोकतंत्र का क्या अर्थ है? भारतीय लोकतंत्र के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं?
अथवा
लोकतंत्र क्या है?
उत्तर -
(Meaning and Definition of Democracy)
सामान्यतः लोकतन्त्र का अर्थ शासन की उस प्रणाली से होता है जिसमें जनता अपना शासन स्वयं चलाती है, कोई व्यक्ति विशेष नहीं। लोकतंत्र के अंग्रेजी पर्याय डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ भी यही है। डेमोक्रेसी शब्द ग्रीक भाषा के डोमोस (Demois) तथा क्रेटिक (Cratic) दो शब्द से मिलकर बना है। डेमोस का अर्थ है शक्ति और क्रेटिक का अर्थ है जनता। इस प्रकार डेमोक्रेसी का अर्थ होता है - जनता के हाथों में शक्ति। राजनैतिक दृष्टि से जिस शासन में जनता की शक्ति सर्वोपरि होती है, उसे लोकतंत्र कहते हैं। अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को इसी दृष्टि से परिभाषित किया है। उनके शब्दों में -
"लोकतंत्र शासन की वह प्रणाली है जिसमें जनता का शासन, जनता द्वारा और जनता के लिए होता है।'
इस परिभाषा में प्रयुक्त जनता शब्द का अर्थ लोग अपने-अपने ढंग से करते हैं। कहीं जनता का अर्थ केवल देश के मूल निवासियों से लिया जाता है, कहीं कुलीन वर्गों के लोगों से और कहीं देश के सभी वयस्कों से। इस सम्बन्ध में एक बात और है और वह यह कि इन आधारों में भी परिवर्तन होता रहता है, उदाहरण के लिए हमारे देश में कल तक 21 वर्ष की आयु पूरी करने पर मताधिकार प्राप्त होता था लेकिन अब 18 वर्ष की आयु पूरी करने पर होने लगा है। यदि देश विदेश की लोकतंत्रीय शासन प्रणालियों पर ही दृष्टिपात करें तो इनमें बड़ी भिन्नता दिखाई देगी। इंग्लैंड में परिवार विशेष के व्यक्ति को राजा अथवा रानी बनाने की प्रथा आज तक चली आ रही है फिर भी वे दावा करते हैं कि उनके यहाँ वास्तविक लोकतंत्र स्थापित है। अमरीका में गोरे काले का भेद आज तक विद्यमान है और देश के काले लोगों को मताधिकार प्राप्त नहीं है, वहाँ भी लोकतंत्र है। पाकिस्तान में आए दिन खून-खराबा होता है और जो ताकतवर होता है वह गद्दी पर बैठ जाता है, पर वे भी लोकतंत्र का ढोल पीटते हैं। बांग्लादेश के राष्ट्रपति की हत्या कर शासन हथियाने वाली सरकार भी अपने को लोकतंत्रात्मक सरकार कहती है। भारत अपने को संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र मानता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी के काल में आपातकाल की घोषणा के बाद व्यक्ति के मूलाधिकार समाप्त कर दिये गये थे और बेगुनाह लोगों को जेल की चाहरदिवारी में बन्द करके उन पर जुल्म ढाये जा रहे थे, पर लोकतंत्र का दावा तब भी किया जा रहा है। 'मुझे किसी की चिन्ता नहीं' कहकर अपनी मनमानी करने वाले श्री मोरार जी देसाई के काल को भी सच्चे लोकतंत्र की संज्ञा दी गई थी। उनके बाद राजीव गांधी का निर्णय भी अन्तिम निर्णय होता था, उफ् किया कि सरकार और पार्टी दोनों से निष्कासन और वे भी अपने को सच्चे लोकतंत्र का प्रहरी कहते थे। राव के प्रधान मंत्रित्वकाल में सत्ता में बैठे लोगों ने जनता और राष्ट्र हित को ताक पर रख, केवल अपनी तिजोरिया भरी। घोटाला प्रधान यह सरकार भी लोकतंत्र का डंका पीटती रही और आज भी वर्गभेद को बढावा देने वाली संविद सरकार भी अपने को लोकतंत्र का रक्षक कहती है। तब समस्या उपस्थित होती है कि वास्तव में लोकतंत्र है क्या?
यदि हम शासन में जनता की शक्ति के प्रभुत्व को ही लोकतंत्र की संज्ञा देते हैं तो फिर हमारे देश में शासन का प्रारम्भ ही लोकतंत्र से मानना होगा। वैदिक काल में जन ( कबीला) शासन का आधार होता था। जन* ( कबीले) के सदस्य अपने में ही किसी वयोवृद्ध व्यक्ति को अपना मुखिया चुनते थे और कार्य विभाजन के आधार पर अपना शासन चलाते थे। उत्तर वैदिक काल में जनपदों का विकास हुआ जो उस समय के राज्य थे। इनका राजनैतिक आधार भौगोलिक सीमाएँ थीं। इनमें भी शासन की शक्ति मूल रूप से जनता के हाथों में होती थी। युद्ध के समय से पूर्व वाक्य और लिच्छवियों के शासन में भी जनता के प्रतिनिधियों की एक साधारण सभा होती थी, उसके ऊपर राज्य परिषद् होती थी और राजा इस परिषद् का प्रधान होता था। साधारण सभा के निर्णयों को उस समय प्रमुखता दी जाती थी। परन्तु धीरे-धीरे शासन की शक्ति जनता के हाथों से निकल कर राजा के हाथों में सिमटने लगी। मुगल काल में यहाँ अधिनायकवाद अर्थात् एकतंत्र शासन की नींव गहरी हो गई। अंग्रेजी काल में शासन ने कई रूप बदले। पहले तो वह ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथों में रहा, फिर ब्रिटेन की पार्लियामेन्ट के अधीन हुआ और अपने अन्तिम चरण में उसमें भारतीयों का प्रतिनिधित्व स्वीकार किया जाने लगा। यूरोपीय लोगों के सम्पर्क में आने पर हम यूरोपीय देशों की जन जागृति से भी परिचित हुए। भारतीय जनमानस जाग उठा और हमने पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए संघर्ष छेड़ दिया। एक लम्बे संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को हम स्वतंत्र हुए और हमने लोकतंत्र के वर्तमान स्वरूप को स्वीकार किया। लोकतंत्र का यह स्वरूप प्राचीन भारतीय लोकतंत्र से भिन्न है, यह यूरोपीय लोकतंत्र पर आधारित है। अतः यहाँ यूरोपीय लोकतंत्र के स्वरूप को समझना आवश्यक है।
पाश्चात्य देशों में लोकतंत्र का श्रीगणेश कब और कैसे हुआ इस संबंध में लोग एक मत नहीं है। कुछ विद्वान इसे वहाँ की प्यूरोनिक सभा का नया रूप मानते हैं और कुछ इसे पुराने समय में स्विट्जरलैंड, हालैंड, जर्मनी तथा हंगरी देशों की राजनीतिक प्रणाली का निखरा हुआ रूप मानते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार इसके इस रूप का जन्म 17 वीं शताब्दी में इंग्लैंड में हुआ था और कुछ के अनुसार इसका प्रारम्भ 1776 में अमरीकी स्वतंत्रता स्वतंत्रता संग्राम से हुआ है। अधिकतर विद्वान इसका जन्म 1789 की फ्रांस की क्रान्ति से मानते हैं। इस आन्दोलन में सम्पूर्ण मानव जीवन के लिए स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व की माँग की गई और ये तीनों आधुनिक लोकतंत्र के मूल सिद्धान्त माने जाते हैं।
इस प्रकार लोकतंत्र मात्र शासन की प्रणाली ही नहीं है अपितु वह जीवन की एक विधि भी है। अनुभव तो यह बताता है कि जब तक यह हमारे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में स्वीकार नहीं किया जाता तब तक यह राजनीतिक क्षेत्र में भी सफल नहीं हो सकता। भारतीय संदर्भ में इसे निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया जा सकता है.-
भारतीय लोकतंत्र शासन की वह प्रणाली है जिसमें जनता अपना शासन स्वयं चलाती है, वही शासक है और वही शासित है। यह लोकतंत्र स्वतंत्रता, समानता, भ्रातृत्व, न्याय, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों पर आधारित है।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये |
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज के आधुनिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बालक पर भारतीय समाज के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए पाठ्यक्रम में किस प्रकार के बदलाव किये जाने चाहिये?
- प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति ने शिक्षा में कौन-सी नयी विचारधाराओं को उत्पन्न किया?
- प्रश्न- शान्तिपूर्ण व सामूहिक जीवन हेतु विभिन्नता में एकता की स्थापना करने वाले घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्तिपूर्ण एवं सामूहिक रहने के लिये विभिन्नता में एकता स्थापित करने में शैक्षिक संस्थाओं की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट करते हुए धर्मनिरपेक्षता की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सन्दर्भ में धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधानों को भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता को प्रोत्साहित करने वाले कारक कौन-से हैं? धर्मनिरपेक्षता के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के कारण भारतीय समाज में क्या परिवर्तन हुए?
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताओं एवं इसके विकास में विद्यालय की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रक्रिया, रूप एवं प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रूप बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास के साधन के रूप में शिक्षा के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? संस्कृति की आवश्यकता एवं महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
- प्रश्न- "शिक्षा एक सामाजिक एवं गत्यात्मक प्रक्रिया है। " इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में शिक्षा की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्ति और समाज के मध्य सम्बन्धों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- वर्तमान समाज में परिवार का स्वरूप बदल गया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सामाजिक व्यवस्था में असमानताओं को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
- प्रश्न- सामाजीकरण में परिवार का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सामाजिक व्यवस्था की मुख्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत से आप क्या समझते हैं? यह शिक्षा से किस प्रकार सम्बन्धित है?
- प्रश्न- सांस्कृतिक विकास की कुछ समस्याएँ बताइये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा सांस्कृतिक परिवर्तन कैसे लाती है?
- प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (समाजशास्त्र और शिक्षा का सम्बन्ध)
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिये। संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की अवधारणा बताइए। भारतीय संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अन्तर्गत वर्णित शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न धाराओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान में लिखित नीति-निदेशक तत्त्वों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- समानता, बन्धुता, न्याय व स्वतंत्रता की संवैधानिक वादे के संदर्भ में शिक्षा के लक्ष्यों से सम्बन्धित संवैधानिक मूल्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थीं?
- प्रश्न- प्रस्तावना से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना तथा इसके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 45 का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रजातन्त्र के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र के प्रमुख गुण व दोषों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र का क्या अर्थ है? भारतीय लोकतंत्र के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "आधुनिक शिक्षा में लोकतांत्रिक प्रवृष्टि दृष्टिगोचर होती है।' स्पष्ट कीजिए तथा लोकतांत्रिक समाज में विद्यालयों की भूमिका पर भी प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जनतंत्र केवल प्रशासन की एक विधि ही नहीं है वरन् यह एक सामाजिक प्रणाली भी है। व्याख्या कीजिए |
- प्रश्न- भारत जैसे लोकतन्त्रीय राष्ट्र में शिक्षा के उद्देश्य किस प्रकार के होने चाहिए?
- प्रश्न- शिक्षा का लोकतन्त्रीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जनतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। जनतंत्र पर शिक्षा के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में जनतन्त्र से आप क्या समझते हैं? सोदाहरण पूर्णतः स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विद्यालय में प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? विद्यालय में प्रजातान्त्रिक वातावरण बनाए रखने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
- प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र और अनुशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षक एवं शिक्षार्थी में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- लोकतंत्र में विद्यालयों की क्या भूमिका होती है?
- प्रश्न- लोकतंत्र में शिक्षा का अन्य पहलू क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के लिए शिक्षा की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारत का संविधान )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा एवं प्रजातंत्र )
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? समानता के क्षेत्र एवं भारत में यह कहाँ तक उपलब्ध है?
- प्रश्न- अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं को बताइये तथा इनके समाधान के उपायों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुसूचित जाति की समस्याओं के समाधान के उपाय बताइये।
- प्रश्न- अल्पसंख्यक की अवधारणा बताइये। अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिये किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- ईसाई धर्म ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया है? उचित उदाहरणों की सहायता से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में सार्वभौमीकरण से क्या तात्पर्य है? शिक्षा में सार्वभौमीकरण की कितनी अवस्थायें एवं वर्तमान में इनकी आवश्यकता एवं महत्व के कारण बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा की सार्वभौमीकरण की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सार्वभौम एवं समावेशी शिक्षा में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिये।
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- प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
- प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना कीजिए?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है समझाइये |
- प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण के गुण एवं दोष बताइये।
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- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के प्रमुख कारण स्क्रेच स्रोत क्या हैं? इन्हें दूर करने हेतु व्यावसायिक सुझाव दीजिए।
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- प्रश्न- कोठारी आयोग के द्वारा प्रवेश शिक्षा के अवसर व समानता व इससे सम्बन्धित सुझाव बताइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में शिक्षा की असमानता को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय आयोग के शैक्षिक अवसरों की समानता सम्बन्धी सुझावों को बताइए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान में अल्पसंख्यकों की सुविधाओं के लिये क्या प्रावधान किये गये हैं?
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- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक अवसरों की समानता )
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- प्रश्न- राष्ट्रीय साक्षरता मिशन क्या है? विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सम्पूर्ण साक्षरता अभियान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री साक्षरता कार्यक्रम पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मध्याह्न भोजन योजना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कॉमन स्कूल पद्धति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- प्रश्न- समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय के बारे में बताइये।
- प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मिड डे मील स्कीम के गुण एवं दोष की गणना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक कार्यक्रम )